“बिहार में भ्रष्टाचार का साम्राज्य—EOU की छापेमारी ने खोली कलई”

- Reporter 12
- 24 Sep, 2025
अमरदीप नारायण प्रसाद
समस्तीपुर से आई खबर बिहार की सच्चाई को एक बार फिर नंगा करती है। आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने बिजली विभाग के अधीक्षण अभियंता विवेकानंद के पटना, सिवान और समस्तीपुर स्थित ठिकानों पर छापेमारी कर 4 करोड़ 87 लाख रुपये से अधिक की अवैध संपत्ति का खुलासा किया है। यह उनकी वैध आय से लगभग 78 प्रतिशत ज्यादा है। सवाल यह है कि जब एक अधीक्षण अभियंता जैसे पद पर बैठे अफसर के पास इतनी बेहिसाब दौलत मिल रही है, तो फिर बड़े पदों पर बैठे अफसरों और नेताओं की दौलत का हिसाब कौन लेगा?बिहार की जनता रोज़ बिजली, सड़क, पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसती है, और अफसर-नेता जनता के खून-पसीने से कमाई गई गाढ़ी कमाई को अपनी तिजोरी भरने में झोंक देते हैं। यह अकेला मामला नहीं है, बल्कि बिहार के प्रशासनिक तंत्र में फैले उस कैंसर की एक बानगी है, जिसने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है।भ्रष्टाचार केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि लोकतंत्र के साथ किया गया सबसे बड़ा विश्वासघात है। जब जनता ने करों और संसाधनों के जरिए राज्य को ताकत दी, तब उसका उपयोग विकास और कल्याण के लिए होना चाहिए था, लेकिन हकीकत यह है कि वही संसाधन अफसरों-नेताओं की ऐय्याशी का जरिया बन गए हैं।
बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ छापेमारी तो होती है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इन कार्रवाइयों के बाद कोई ठोस नतीजा सामने आता है? जनता देखती है कि छापेमारी की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं, लेकिन कुछ ही महीनों बाद वही भ्रष्ट अफसर “प्रभावशाली लॉबिंग” करके फिर से मलाईदार पद पर बैठा मिलता है। यह सिलसिला अगर यूं ही चलता रहा तो बिहार कभी भी विकास की दौड़ में आगे नहीं बढ़ पाएगा।
अब समय आ गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई केवल दिखावा न रह जाए। बिहार सरकार और न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की केवल संपत्ति जब्त न हो, बल्कि उन्हें कठोर सज़ा भी मिले। तभी जनता का भरोसा लौटेगा और यह संदेश जाएगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
बिहार की सबसे बड़ी समस्या न गरीबी है, न बेरोजगारी—बल्कि सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार है। जब तक यह जड़ से नहीं उखाड़ा जाएगा, तब तक विकास के सारे दावे महज़ खोखले नारे ही साबित होंगे।
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